Friday, 14 July 2017

सबसे ख़ुले नेटवर्क पर एक बातचीत

हास्य-व्यंग्य

मैं एयरपूंछ से फलानी बोल रही हूं, संजय जी बोल रहे हैं ?

‘संजय जी तो यहां कोई नहीं है ! ....’

.......(तिन्न-मिन्न, कुतर-फुतर.....)

यहां तो संजय ग्रोवर है.....

(आजकल एक साइट भी, जो पहले संजय ग्रोवर के नाम से मेल भेजती थी, संजय जी के नाम से भेजने लगी है, लगता है ‘निराकार’ अपनी पोल ख़ुद ही खोलने पर उतारु है)

हां-हां, मैं माफ़ी चाहती हूं, उन्हीं से बात करनी थी... आपने एक नंबर डिस्कनेक्ट करवाने के लिए रिक्वेस्ट की थी...

मैंने तो दो के लिए की थी....

हां-हां, माफ़ी चाहती हूं....


आप क्यों डिस्कनेक्ट कराना चाहते हैं, समस्या क्या है ?

कोई एक वजह हो तो बताऊं, कई साल से झेल रहा हूं....

माफ़ी चाहती हूं, बहुत-बहुत माफ़ी चाहती हूं.......

इतनी माफ़ी मैं लाऊंगा कहां से, पूरे दिन ही कोई न कोई मांगता रहता है.....

आप क्यों हटवा रहे हैं, मैं सस्ता करवा दूंगी.....

पहले एक लड़की महंगा बेचती है, फिर दूसरी सस्ता कराती है.....आप पहले क्यों नहीं आईं.....

माफ़ी चाहतीं हूं......अभी तो यह कनेक्शन चल रहा है....

चल रहा होगा, मैंने अपनी तरफ़ से तो कटवा दिया......

अब क्या करना है...

मुझे क्या पता, डिस्कनेक्ट करने के बाद आप क्या करते हैं कनेक्शन का.....

पर यह कनेक्शन अभी चल रहा है...

परसों रात मैंने खाना मंगाने के लिए किया तब तो बता रहा था कट चुका है, अब चल रहा है ? मैं बिना खाने के सोया.....

पर यह तो चालू है....

यह तो बड़ा चालू है ! इतना चालू मुझे नहीं चाहिए, मैं अकेला आदमी, यहां चारों तरफ़ चा....

आपसे रात को किसने कहा कि कट गया है ?

मुझे क्या मालूम, रिकॉर्डिंग होगी, आपके ओनर को पता होगा किसको ठेका देते हैं.....मैं क्या यहां पर सबके फ़ोटो लगाए बैठा हूं.....फ़ोन में क्या दिखाई देता है...

यहां पर लिखा आ रहा है चालू....

मैं क्या करुं, मुझे क्या यहां से दिख रहा है...आपने ही लिख लिया होगा, आपका क़ाग़ज़, आपका पैन, मुझे तो यह भी नहीं पता आपका दफ़्तर कहां है....

मैं आपको 499 का प्लान करवा दूंगी....

पहले तो आपने ही यहां गत्ता लगा रखा है कि 899 से कम कुछ है ही नहीं.....

पर मैं करा सकती हूं....

आप करा सकतीं हैं तो दूसरी क्यों नहीं करा सकती थी ? आप लोगों का आपस में भी लफ़ड़ा है ?

नहीं-नहीं...

फिर आप ही क्यों नहीं इंचार्ज बन जातीं....आप कहें तो मैं आपके लिए......

मैं बहुत सस्ता करा दूंगी 

मुझे नहीं चाहिए सस्ती चीज़ें, यहां सब सस्ता है-सस्ती बातें सस्ती हरक़तें....

अब क्या करना है ? इतना महंगा क्यों चला रहे हैं...

मैंने कटवा के दूसरा ले लिया, आपके यहां से ही लिया है, आपको पता ही नहीं है, आप लोगों का आपस में कोई तालमेल ही नहीं है....

इसको लगवा लीजिए, इसमें....

अब हटवा दिया.....गीता में लिखा है जो हुआ अच्छा हुआ....

यह आपने बहुत अच्छी बात कही सर....

यह मैंने नहीं कही, गीता में से निकाली है....यहां के नये लोगों को भी पुरानी बातें जल्दी समझ में आती हैं इसलिए.....

हिच हिच हिच अब क्या करना है सर...हिच हिच हिच डिस्कनेक्ट करना है...हिच हिच हिच...........

सौ परसेंट करना है.....

हिच हिच हिच....एयरपूंछ में समय देने के लिए धन्यवाद...हिच हिच हिच....

समय लेने के लिए थैंक्यू.....

(एक ख़ुले नेटवर्क पर अभी कुछ देर पहले हुई थोड़ी-सी ख़ुली बातचीत, स्मृति के आधर पर कुछ अंश)

-संजय ग्रोवर
14-07-2017

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