Monday 17 February 2020

आ साक़िया, मिला

ग़ज़ल

अपनी तरह का जब भी उन्हें माफ़िया मिला
बोले उछलके देखो कैसा काफ़िया मिला

फ़िर नस्ल-वर्ण-दल्ले हैं इंसान पे काबिज़
यूँ जंगली शहर में मुझे हाशिया मिला

मुझतक कब उनके शहर में आती थी ढंग से डाक
यां ख़बर तक न मिल सकी, वां डाकिया मिला

जब मेरे जामे-मय में मिलाया सभी ने ज़ह्र
तो तू भी पीछे क्यों रहे, आ साक़िया, मिला

मुझको जहाँ पे सच दिखा, हिम्मत दिखी, ग़ज़ब-
उनको वहीं पे फ़ोबिया.....सिज़ोफ्रीनिया मिला

उनको जहाँ पे सभ्यता औ’ संस्कृति दिखी
मुझको वहीं पैरेनॉइका...सीज़ोफ्रीनिया मिला

-संजय ग्रोवर

2 comments:

  1. बहुत ही उम्दा लिखावट ,बहुत आसान भाषा में समझा देती है आपकी ये ब्लॉग धनयवाद इसी तरह लिखते रहिये और हमे सही और सटीक जानकारी देते रहे ,आपका दिल से धन्यवाद् सर
    Aadharseloan (आप सभी के लिए बेहतरीन आर्टिकल संग्रह जिसकी मदद से ले सकते है आप घर बैठे लोन) Ankit

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  2. बहुत ही उम्दा लिखावट , बहुत ही सुंदर और सटीक तरह से जानकारी दी है आपने ,उम्मीद है आगे भी इसी तरह से बेहतरीन article मिलते रहेंगे
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