नक़ली दुश्मन से अख़बारी पन्नों पे लड़ते हैं
ऊँचे-ऊँचे दिखते हैं जो लोग फ़ासलों से
नीचे गिर कर ही अकसर वो ऊपर चढ़ते हैं
जो जहान को फूलों से नुकसान बताते हैं
उनकी नाक तले गुलशन में काँटे बढ़ते हैं
वे भी जिनसे लड़ते थे उन जैसे हो बैठे
अपनी सारी ताक़त से हम जिनसे लड़ते हैं
उन लोगों की बात न पूछो उनके क्या कहने
पत्थर जैसे मन, पर तन पर शीशे जड़ते हैं
लोग न जाने क्यूँ डरते हैं, जीते दोहरा जीवन
जैसे बढ़िया जिल्द में घटिया पुस्तक पढ़ते हैं
-संजय ग्रोवर