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Wednesday, 5 October 2016

फ़िल्मी

लघुकथा



बहुत-से लोग चाहते हैं कि उनपर कोई फ़िल्म बनाए।

हालांकि उनमें से कईयों की ज़िंदगी पहले से ही फ़िल्म जैसी होती है।

उनके द्वारा छोड़ दिए गए सारे अधूरे कामों को फ़िल्मों में पूरा कर दिया जाता है।

किसीने कहा भी है कि ज़िंदगी में किसी समस्या से निपटने से आसान है फ़िल्म में उसका ख़ात्मा कर देना।

किसीने क्या, मैंने ही कहा है।



-संजय ग्रोवर

05-10-2016


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