लघुव्यंग्यकथा
सड़क-किनारे एक दबंग-सा दिखता आदमी एक कमज़ोर-से लगते आदमी को सरे-आम पीट रहा था। पिटता हुआ आदमी ‘बचाओ-बचाओ’ चिल्ला रहा था। लोग बेपरवाह अपने रुटीन के काम करते गुज़र रहे थे।
‘हाय! हमें बचाने कोई नहीं आता, कोई हमारा साथ नहीं देता.....’, वह कराह रहा था...
एक आदमी रुका, ‘क्यों भई, बात क्या है ? क्यों पीट रहे हो उसे !? क्या बिगाड़ा है उसने तुम्हारा ?’
दबंग अभी कुछ जवाब देता कि पिटनेवाला एकदम उठकर खड़ा हो गया, कड़क कर बोला, ‘किसने तुम्हे बुलाया ? शर्म नहीं आती, फूट डालने की कोशिश कर रहे हो हम दोनों में !’
ज़ाहिर है कि बीच में पड़नेवाला आदमी सकपका गया, ऐसी तो उसने कल्पना तक न की थी।
ख़ुदको छला गया महसूस करते हुए वह भारी मन और भारी क़दमों से घर लौटा।
अब जब कभी वह राह चलते ऐसे दृश्य देखता है, कोई पुकार सुनता है तो उसे कोई रियाज़, रुटीन या रिहर्सल मानते हुए आगे बढ़ जाता है।
-संजय ग्रोवर
30-01-2016
सड़क-किनारे एक दबंग-सा दिखता आदमी एक कमज़ोर-से लगते आदमी को सरे-आम पीट रहा था। पिटता हुआ आदमी ‘बचाओ-बचाओ’ चिल्ला रहा था। लोग बेपरवाह अपने रुटीन के काम करते गुज़र रहे थे।
‘हाय! हमें बचाने कोई नहीं आता, कोई हमारा साथ नहीं देता.....’, वह कराह रहा था...
एक आदमी रुका, ‘क्यों भई, बात क्या है ? क्यों पीट रहे हो उसे !? क्या बिगाड़ा है उसने तुम्हारा ?’
दबंग अभी कुछ जवाब देता कि पिटनेवाला एकदम उठकर खड़ा हो गया, कड़क कर बोला, ‘किसने तुम्हे बुलाया ? शर्म नहीं आती, फूट डालने की कोशिश कर रहे हो हम दोनों में !’
ज़ाहिर है कि बीच में पड़नेवाला आदमी सकपका गया, ऐसी तो उसने कल्पना तक न की थी।
ख़ुदको छला गया महसूस करते हुए वह भारी मन और भारी क़दमों से घर लौटा।
अब जब कभी वह राह चलते ऐसे दृश्य देखता है, कोई पुकार सुनता है तो उसे कोई रियाज़, रुटीन या रिहर्सल मानते हुए आगे बढ़ जाता है।
-संजय ग्रोवर
30-01-2016
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