ग़ज़ल
कोई पत्ता हरा-सा ढूंढ लिया
तेरे घर का पता-सा ढूंढ लिया
जब भी रफ़्तार में ख़ुद को खोया
थोड़ा रुकके, ज़रा-सा ढूंढ लिया
उसमें दिन-रात उड़ता रहता हूं
जो ख़्याल आसमां-सा ढूंढ लिया
शहर में आके हमको ऐसा लगा
दश्त का रास्ता-सा ढूंढ लिया
तेरी आंखों में ख़ुदको खोया मगर
शख़्स इक लापता-सा ढूंढ लिया
पत्थरों की अजीब दुनिया ने
मुझमें इक आईना-सा ढूंढ लिया
उम्र-भर की ठगी-सी आंखों ने
बादलों में धुंआ-सा ढूंढ लिया
भीड़ के धोखे में आकर अकसर
बुत ने ख़ुदमें ख़ुदा-सा ढूंढ लिया
-संजय ग्रोवर
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ReplyDeleteबहुत ही शानदार लेख
ReplyDeleteआगे भी ऐसे ही लिखते रहिये।
यूपी हिंदी न्यूज़ की तरफ से आपको बहुत-बहुत शुभकामनाये।