बहुत पुरानी एक ग़ज़ल
डूबता हूं न पार उतरता हूं
आप पर एतबार करता हूं
ग़ैर की बेरुख़ी क़बूल मुझे
दोस्तों की दया से डरता हूं
जब भी लगती है ज़िंदगी बेरंग
यूंही ग़ज़लों में रंग भरता हूं
अपना ही सामना नहीं होता
जब भी ख़ुदसे सवाल करता हूं
करके सब जोड़-भाग वो बोला
मैं तो बस तुमसे प्यार करता हूं
-संजय ग्रोवर
डूबता हूं न पार उतरता हूं
आप पर एतबार करता हूं
ग़ैर की बेरुख़ी क़बूल मुझे
दोस्तों की दया से डरता हूं
जब भी लगती है ज़िंदगी बेरंग
यूंही ग़ज़लों में रंग भरता हूं
अपना ही सामना नहीं होता
जब भी ख़ुदसे सवाल करता हूं
करके सब जोड़-भाग वो बोला
मैं तो बस तुमसे प्यार करता हूं
-संजय ग्रोवर