Tuesday 16 April 2019

इक रोशन लम्हे की खातिर

ग़ज़ल


बाहर से ठहरा दिखता हूँ भीतर हरदम चलता हूँ
इक रोशन लम्हे की खातिर सदियों-सदियों जलता हूँ

आवाज़ों में ढूँढोगे तो मुझको कभी न पाओगे
सन्नाटे को सुन पाओ तो मैं हर घर में मिलता हूँ

दौरे-नफरत के साए में प्यार करें वो लोग भी हैं
जिनके बीच में जाकर लगता मैं आकाश से उतरा हूँ

कितने दिलों ने अपने आँसू मेरी आँख में डाल दिए
कोई आँसू ठहर न जाए यूँ मैं खुल कर रोता हूँ

-संजय ग्रोवर,

4 comments:

  1. सदियों जलता हूँ

    रोशन लम्हे की खातिर जलने का यह अंदाज़ बहुत सुंदर है

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  2. hey, very nice site. thanks for sharing post
    Writeforus

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