Friday, 16 August 2019

(Advertisement Idea by Sanjay Grover)

शूटिंग का दृश्य-
गाना बजता है-‘तेरी ज़ुल्फ़ों से जुदाई......
लड़की लहराती हुई ज़ुल्फ़ों के साथ प्रवेश करती है-
डायरेक्टर-‘कट! कोई दूसरा गाना लगाओ-
दूसरा गाना बजाया जाता है-
‘उड़ी जो तेरी ज़ुल्फ़ें......
लड़की दोबारा अभिनय करती है।
डायरेक्टर-‘उंह, मज़ा नहीं आ रहा.....’
तीसरा गाना लगाया जाता है-
‘ज़ुल्फ़ लहराई तो.....
डायरेक्टर-‘ओफ़ªफ़ो! मज़ा क्यों नहीं आ रहा ? सब रुखा-रुखा क्यों लग रहा है ?’
सहायक-‘अरे! सर! बजाज आमंड्स् तेल तो लगाया ही नहीं!’
डायरेक्टर-‘हां यार! पहले तेल तो लगाओ, फ़िर कोई गाना गाओ.....’
और तेल लगे बालों के साथ अगले दृश्य में शूटिंग सफ़लतापूर्वक संपन्न होती है।
स्क्रीन पर पंक्तियां और आवाज़ उभरतीं हैं-
              बजाज आमंड्स् ड्रॉप्स्
तेल लगाओ, गाना गाओ
तेल लगाओ, गाना गाओ

-संजय ग्रोवर
(आज ही देखा, आज ही भेजा 17-08-2019)  

Monday, 12 August 2019

तेरे घर का पता-सा...


ग़ज़ल

कोई पत्ता हरा-सा ढूंढ लिया
तेरे घर का पता-सा ढूंढ लिया

जब भी रफ़्तार में ख़ुद को खोया
थोड़ा रुकके, ज़रा-सा ढूंढ लिया

उसमें दिन-रात उड़ता रहता हूं
जो ख़्याल आसमां-सा ढूंढ लिया

शहर में आके हमको ऐसा लगा
दश्त का रास्ता-सा ढूंढ लिया

तेरी आंखों में ख़ुदको खोया मगर
शख़्स इक लापता-सा ढूंढ लिया

पत्थरों की अजीब दुनिया ने
मुझमें इक आईना-सा ढूंढ लिया

उम्र-भर की ठगी-सी आंखों ने
बादलों में धुंआ-सा ढूंढ लिया

भीड़ के धोखे में आकर अकसर
बुत ने ख़ुदमें ख़ुदा-सा ढूंढ लिया

-संजय ग्रोवर

Tuesday, 16 April 2019

इक रोशन लम्हे की खातिर

ग़ज़ल


बाहर से ठहरा दिखता हूँ भीतर हरदम चलता हूँ
इक रोशन लम्हे की खातिर सदियों-सदियों जलता हूँ

आवाज़ों में ढूँढोगे तो मुझको कभी न पाओगे
सन्नाटे को सुन पाओ तो मैं हर घर में मिलता हूँ

दौरे-नफरत के साए में प्यार करें वो लोग भी हैं
जिनके बीच में जाकर लगता मैं आकाश से उतरा हूँ

कितने दिलों ने अपने आँसू मेरी आँख में डाल दिए
कोई आँसू ठहर न जाए यूँ मैं खुल कर रोता हूँ

-संजय ग्रोवर,

Thursday, 28 March 2019

जब मिलेगा, उसीसे पूछेंगे

ग़ज़ल

मेरी आवारग़ी को समझेंगे-
लोग जब ज़िंदग़ी को समझेंगे

गिरनेवालों पे मत हंसो लोगो
जो गिरेंगे वही तो संभलेंगे

ऐसी शोहरत तुम्हे मुबारक़ हो-
हमने कब तुमसे कहा! हम लेंगे!

जब भी हिम्मत की ज़रुरत होगी
एक कोने में जाके रो लेंगे 




क्यूं ख़ुदा सामने नहीं आता
जब मिलेगा, उसीसे पूछेंगे 

मर गए हम तो लोग रोएंगे
जीतेजी, पर, वो प्यार कब देंगे

तूने क्या-क्या न हमको दिखलाया
ऐ ख़ुदा! हम तुझे भी देखेंगे

वो अगर मौत से रहा डरता
लोग हर रोज़ उसको मारेंगे


-संजय ग्रोवर

(ख़ुदा =भगवान=god)

Monday, 18 February 2019

फिर आदमी बन जा

ग़ज़ल 

ज़िंदगी की जुस्तजू में ज़िंदगी बन जा
ढूंढ मत अब रोशनी, ख़ुद रोशनी बन जा

रोशनी में रोशनी का क्या सबब, ऐ दोस्त!
जब अंधेरी रात आए, चांदनी बन जा

गर तक़ल्लुफ़ झूठ हैं तो छोड़ दे इनको
मैंने ये थोड़ी कहा, बेहूदगी बन जा

हर तरफ़ चौराहों पे भटका हुआ इंसान-
उसको अपनी-सी लगे, तू वो गली बन जा

कुंओं में जीते हुए सदियां गई ऐ दोस्त
क़ैद से बाहर निकल, फिर आदमी बन जा

गर शराफ़त में नहीं पानी का कोई ढंग
बादलों की तर्ज़ पे आवारगी बन जा

-संजय ग्रोवर

Saturday, 2 February 2019

हमको बीमारी भली लगने लगी, ऐसा भी था


बह गया मैं भावनाओं में कोई ऐसा मिला
फिर महक आई हवाओं में कोई ऐसा मिला

हमको बीमारी भली लगने लगी, ऐसा भी था
दर्द मीठा-सा दवाओं में कोई ऐसा मिला

खो गए थे मेरे जो वो सारे सुर वापस मिले
एक सुर उसकी सदाओं में कोई ऐसा मिला

पाके खोना खोके पाना खेल जैसा हो गया
लुत्फ़ जीने की सज़ाओं में कोई ऐसा मिला

-संजय ग्रोवर

(एक पुरानी ग़ज़ल)



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